श्री हूमड़ जैन समाज ट्रस्ट, इन्दौर

इन्दौर की प्रतिनिधि संस्था

( पंजीयन क्रमांक 403- दिनांक 26 अप्रेल 1991 )

इन्दौर हूमड़ समाज- इतिहास

उन्नीसवीं शताब्दि के अंत व बीसवीं शताब्दि के प्रारंभ में इन्दौर नगर अपने नगरीय स्वरूप को गृहण कर रहा था । इन्दौर में आर्थिक उन्नति , शिक्षा के अवसर , मालवा का मौसम एवं खानपान ने प्रगतिशील हूमड़ों को अपनी और आकर्षित किया । जैसा की कई जगह उल्लेखित है सबसे पहले उन्नीसवीं शताब्दि के अंतिम वर्षों में कुन्दनजी कोड़िया , प्रतापगढ़ से और वेणीचन्दजी भाईजी दक्षिण से इन्दौर आये । वेणीचन्दजी भाईजी ने अपने निवास शक्कर बाजार में एक चैत्यालय की भी स्थापना की । कालंतर में निवास स्थान पर अग्नि दुर्घटना होने के कारण चैत्यालय में प्रतिष्ठित मूर्ति शक्कर बाजार स्थित दिगंबर जैन मन्दिर में प्रतिष्ठित कर दी गई । सर सेठ हुकमचंदजैन दि . जैन बोर्डिंग नसिया ने भी शिक्षा एवं निवास का आकर्षण देकर हूमड़ों को इन्दौर की और आकर्षित किया | स्वयं सेठ हुकमचन्दजी हूमड़ों की कार्य कुशलता , ईमानदारी एवं क्षमता के प्रशंसकथे । उन्होंने हूमड़ों को अपने प्रतिष्ठानों में महत्वपूर्ण पदों की जिम्मेदारिया देकर , इन्दौर में हूमड़ समाज की बेल को पल्लवित किया । इन्दौर आया प्रत्येक हूमड़ अपने पैरों पर खड़ा होने लगा था । अपने उत्पत्ति स्थल गुजरात के खेड़ ब्रह्मा से आगे बढ़ा क्षत्रिय वंशज हूमड़ राजस्थान के कई गाँवों एवं कस्बो में अपनी सफलता के परचम फैला कर इन्दौर ( इन्द्रपुरी ) आकर बसने लगा था । मेहनती , कर्तव्यनिष्ठ और स्वाभिमानी हूमड़ों को शने शने सफलताएं हाथ लगने लगी । हूमड़ स्वावलंबी एवं आत्मनिर्भर होते चले गये और इन्दौर में हूमड़ परिवार बढ़ते चले गए । सन् 1958 तक इन्दौर में करीब 200 हूमड़ परिवार हो गए थे । अब हूमड़ एव हूमड़ परिवारों को इन्दौर के अन्य समाजों में उचित स्थान एवं सम्मान प्राप्त होने लगा था और हूमड़ों की कुशलता , ईमानदारी और कर्तव्य परायणता को सर्वथा मान्यता प्राप्त हो गई थी परन्तु भिन्न भिन्न स्थानों से आये हूमड़ों को एक सूत्र में बांधने का काम अभी बाकी था । स्वर्गीय श्री झमकलालजी बंडी व उनके सहयोगियों ने सामाजिक चेतना के इस कार्य को करने का बीड़ा उठाया , सजग समाज सेवकों ने विचार किया कि समाज का एक संगठित रूप होना चाहिए , जो उन्हें एक सूत्र में बांधे रखे और भविष्य में सुख – दुःख एवं सर्वांगीण विकास का सहभागी बने , परिणाम स्वरूप ” श्री हूमड़ समाज , इन्दौर ” की विधिवत स्थापना सन् 1959 में हुई । समाज की गतिविधियाँ स्वस्थ एवं पारदर्शिता से संचालित हो सके इस हेतु स्वर्गीय सागरमलजी मौला एवं सहयोगियों ने मिलकर समाज के लिए एक सुदृढ़ विधान का निर्माण किया जिसे सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया । सब तरफ के आये लोगों का सहयोग संस्था के साथ जुड़ता चला गया । इसी समय स्वर्गीय श्री करणमलजी मेहता ने विचार रखा कि श्री हूमड़ समाज , इन्दौर का एक भवन होना चाहिए जो की भिन्न भिन्न क्षेत्रों से आये हुमड़ परिवारों के लगाव , सामाजिक आवश्यकताओं एवं भविष्य की योजनाओं का केन्द्र बन सके । इस दूरदर्शी विचार को जागरूक हूमड़ों ने उत्साह पूर्वक सह- हृदय समर्थन दिया । 6600 वर्ग फुट का एक प्लाट गुलाब पार्क , राजमोहल्ला में भवन – निर्माण हेतु खरीद लिया गया । समाज की क्षमता सीमित थी किन्तु प्रेरणा के स्तोत्र विशाल थे । भवन – निर्माण का कार्य प्रारंभ हुआ । गति धीमी किन्तु दृढ़ थी। ज्यों ज्यों हूमड़ समाज इन्दौर के भवन की दीवारे उठती गई और समाज अपने पूर्वजो के संजोये सपनो को पूरा करता चला गया , उठती दीवारें हमारे स्वस्थ संगठन एवं सामाजिक विकास का प्रतिक बन गई । विगत छः दशकों में इन्दौर हुमड़ समाज ने शिक्षा , चिकित्सा , सामाजिक समरसता , पारम्परिक रीती- रिवाज एवं आर्थिक विकास की कई सफलतम योजनाओं को संचालित कर इन्दौर ही नहीं अपितु सम्पूर्ण भारतवर्ष के जैन समाजों को अपनी सेवाभावी योजनाओं से दिशा प्रदान कर स्वयं को अग्रिम पंक्ति में खड़ा किया है । आज हूमड़ जैन समाज इन्दौर एक वट वृक्ष का रूप ले चूका है और इन्दौर ही नहीं अपितु सम्पूर्ण भारतवर्ष के हूमड़ समाजों के साथ मिलकर कई योजनाओं का नेतृत्व कर रहा है । इन सफलताओं के 63 वर्षों के सफर में समाज को विचारशील , दूरदर्शी , कुशल नेतृत्व के धनी 11 सम्मानीय अध्यक्षों का नेतृत्व प्राप्त हुआ है । उनमें से आज 7 अध्यक्ष हमारे बीच नहीं है उन्हें श्रृद्धा से नमन करता हूँ । और जो पूर्व अध्यक्ष आज भी हमारा मार्गदर्शन कर रहे है उनके दीर्घायु जीवन की कामना करता हूँ । साथ ही अंतर्मन से प्रत्येक हूमड़ सदस्य को नमन करता हूँ जो समाज की समस्त योजनाओं में सदैव तन – मन – धन से सहयोग देकर एक स्वस्थ , शिक्षित एवं प्रगतिशील समाज निर्माण के कर्णधार बने ।

सदैव प्रगति के पथपर .....

हूमड़ समाज - शिक्षित समाज

हूमड़ समाज - स्वस्थ समाज

हूमड़ समाज - डिजिटल समाज